आज 23 अगस्त 2023 को महाकवि संत गोस्वामी तुलसीदास जी का प्राकट्य दिवस (जन्म दिवस) है।
रामचरित मानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास
नवभारत news 24/ रमेश मित्तल/ दल्लीराजहरा।कमल शर्मा ने देश के समस्त वासियों को कवि कुलभूषण भक्त शिरोमणि संत गोस्वामी तुलसीदास जी के ५२७ वें प्राकट्य दिवस (जन्मदिवस )के शुभ अवसर पर हार्दिक बधाई एवं बहुत-बहुत शुभकामनाएं प्रेषित की है। परम पिता परमेश्वर से प्रार्थना समस्त देशवासी उनके गोस्वामी तुलसीदास जी के बताए हुए मार्ग का अनुसरण करें, जिससे देश में रामराज की परिकल्पना साकार हो और समस्त देश में समरसता, सामंजस्य, सौहार्द तथा एकता कायम हो जिससे सभी खुशहाल एवं निर्विघ्न जीवन यापन कर सकें।
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गोस्वामी तुलसीदास जी की संक्षिप्त जीवनी
कवि कुलभूषण भक्त शिरोमणि संत गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म
*पन्द्रह सौ चौवन वि.स॑. कालिंद्री के तीर* ।
*श्रावण शुक्ला सप्तमी तुलसी धर्यो शरीर* ।।
दोहे के अनुसार बांदा जिला जो विभाजित होकर अब चित्रकूट जिला बना है, मैं यमुना नदी के किनारे स्थित राजापुर ग्राम में श्रावण शुक्ल पक्ष की तिथि सप्तमी संवत् १५५४ में हुआ था। उनके पिता का नाम पंडित आत्माराम दुबे तथा माता का नाम हुलसी था। पंडित आत्माराम दुबे (सरार दुबे) सरयूपारीण ब्राह्मण थे। उनके घर में चुनिया नाम की दासी गृह कार्य एवं सेवा कार्य करती थी।
*संत गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्म* *के* *समय ५ विशेष घटनाएं घटी*,,,,,
(१) उनके जन्म के समय में ही बत्तीसों दांत थे।
(२) जन्मते ही उनके मुख से राम राम शब्द निकला था, जिससे उनका नाम *राम बोला* रखा गया।
(३) वे जन्म के समय रोए नहीं।
(४) उनके जन्म के समय उनके घर में स्थित मंदिर में लगी घंटियां एकाएक बजने लगी।
(५) वे अभुक्त मूल नक्षत्र में पैदा हुए।
अभुक्त मूल नक्षत्र में पैदा होने के कारण बालक के अनिष्ट की आशंका से पिता ने उन्हें त्याग दिया। जिसके कारण उनकी माता हुलसी बीमार हो गई तथा दो दिन बाद उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। उनकी माता के प्राण त्यागने के बाद हुलसी की दासी चुनिया ने ५ साल तक पास में स्थित गौरी शंकर मंदिर में रहकर उनका पालन पोषण किया। ५साल बाद चुनिया दासी का भी देहांत हो गया, जिससे गोस्वामी तुलसीदास जी अनाथ हो गए। दासी चुनिया के मृत्यु के बाद भगवती पार्वती जी ने स्वयं वृद्धा का रूप धारण कर गौरी शंकर मंदिर में आकर उनको भोजन कराती थी। कभी-कभी उनको चार-पांच दिनों तक भूखा रहना पड़ता था।
भगवान शंकर जी की प्रेरणा से इस अभागे बालक को स्वामी नरहर्यानंद जी पहले अयोध्या और बाद में सूकर क्षेत्र में ले गए। इनका नाम उन्होंने राम बोला रखा। संवत १५६१ की माघ शुक्ल पक्ष की तिथि पंचमी को इनका यज्ञोपवीत संस्कार किया गया। अत्यंत प्रखर बुद्धि होने के कारण रामबोला ने अल्पायु में ही स्वामी नरहर्यानंद जी से यथेष्ठ
विद्यापार्जन कर लिया। उन्होंने गुरु जी को रामचरितमानस कंठस्थ करके सुनाया, तब उन्होंने इनका नाम तुलसीदास रख दिया। कुछ समय पश्चात आप काशी चले गए और उन्होंने वहां १५ साल विद्याध्यन किया। तत्पश्चात आप गुरु जी की आज्ञा लेकर अपने ग्राम राजापुर आ गए। यहां आपका विवाह राजापुर यमुना नदी के उस पार स्थित महेवा ग्राम में पंडित दीनबंधु पाठक की अति सुंदर कन्या रत्नावली से हुआ। गोस्वामी तुलसीदास जी परम सुंदरी अपनी पत्नी रत्नावली पर अत्यंत आसक्त रहते थे। एक बार रत्नावली की माता अत्यंत गंभीर बीमार हुई तो उनका भाई रत्नावली को लेने
आया ।गोस्वामी तुलसीदास जी उस समय घर पर नहीं थे, बिना बताए रत्नावली अपने मायके चली गई। गोस्वामी जी उनके विरह में व्याकुल होकर उनके पीछे पीछे वहां पहुंच गए। इससे लज्जित होकर रत्नावली इनकी भर्सना की और कहा,,,,
*लाज न आवत आपको, दौरे आए* *साथ*।
*धिक धिक ऐसे प्रेम को ,कहा कहौं मैं* *नाथ।।*
*अस्थि चर्म मय देह मम, ता में ऐसी* *प्रीति।*
*तैसी* *जो श्रीराम में, होत न तब* *भवभीत।।*
पत्नी का यह वचन रूपी तीर मर्मस्थल में लगा तो श्री गोस्वामी जी सांसारिक बंधन त्याग कर श्री राम भक्ति के प्रशस्त मार्ग पर चल पड़े। चलकर वे प्रयाग होते हुए काशी आए और वहां श्री राम कथा कहने लगे। उन्हें एक प्रेत मिला ,उसने उन्हें हनुमान जी का पता बताया। हनुमान जी से मिलकर तुलसीदास जी ने अपनी श्री राम दर्शन की अभिलाषा पूर्ण करने का प्रयत्न किया। हनुमान जी ने उन्हें चित्रकूट भेजा। एक दिन उन्होंने मार्ग में दो सुंदर राजकुमार घोड़ों पर जाते हुए देखें। वे उनकी सुंदरता पर मोहित होकर देखते हुए खड़े रह गए। फिर हनुमान जी ने सारा भेद बताए, तब वे बड़े पछताए। फिर एक दिन चंदन घिसते समय दो सुंदर बालक आए और उन्होंने तुलसीदास जी से चंदन मांगा। उन्हें चंदन देकर तुलसीदास जी उनके हाथ से अपने मस्तक पर चंदन लगवाने लगे। उनकी छवि देख कर तुलसीदास जी अचेता अवस्था में हो गए, फिर उन्हें अचेत देखकर हनुमान जी ने तोते के रूप में यह दोहा पढा,,,
*चित्रकूट के घाट पर,*
*भई संतन की भीर।*
*तुलसीदास चंदन घिसें,*
*तिलक देत रघुवीर।।*
जिसे सुनकर तुलसीदास जी को होश आया। तब उन्होंने भगवान श्री राम का दर्शन किया तत्पश्चात भगवान श्री राम अंतर्ध्यान हो गए। भगवान के आदेशानुसार गोस्वामी तुलसीदास जी चलकर पुनः अयोध्या आए और उन्होंने सम्बत१६३१ के मधुमास की रामनवमी को **श्रीरामचरितमानस**की रचना प्रारंभ की। गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में स्वयं लिखा है,,,
*संवत सोरह सौ एकतीसा।*
*करउं कथा हरिपद धरि सीसा।।*
*नौमी भौमवार मधु मासा।*
*अवधपुरी यह चरित प्रकासा।।*
इस महान काव्य की रचना में उन्हें समय-समय पर श्री भगवान शंकर जी तथा हनुमान जी से प्रेरणा मिली। यह महान काव्य ग्रंथ २वर्ष ७महीने और २६ दिन में लिखकर समाप्त हुआ।
महाकवि संत गोस्वामी तुलसीदास जी की श्री रामचरित्
मानस के अयोध्या कांड की उनकी हस्तलिखित प्रति राजापुर में तुलसी मानस संग्रहालय में अभी वर्तमान में मौजूद है । *समस्त मानस प्रेमी जो उनकी* *हस्तलिखित अयोध्या कांड* *का दर्शन या अवलोकन* *करना चाहते हैं वे राजापुर जाकर कर* *सकते हैं।*
*वेद मत सोधि सोधि,*
*शोधि के पुराण सभी।*
*संत और असंतन के,*
*भेद को बतावतो ।।*
*कपटी ,कुराही, क्रूर,*
*कलि के कुचाली जीव।*
*कौन राम नाम हू की ,*
*चर्चा* *चलाओ तो।।*
*बेनी कवि कहैं मानो मानो,* *प्रतीत यह।**
**पाहन हिये में कौन,*
*प्रेम उपजावतो।।*
*भारी भवसागर उतरतो,*
*कवन पार।*
*जो* *पै यह रामायण ,*
*तुलसी न गावतो।।* 🌹
महाकवि संत गोस्वामी तुलसीदास जी १२६ वर्ष की उम्र में सम्वत१६८० की श्रावण शुक्ला सप्तमी को काशी में गंगा के अस्सी घाट के किनारे अपना शरीर त्याग करके स्वर्ग लोक ( परमधाम ) को चले गए।
*संवत सोलह सौ अस्सी ,*
*अस्सी घाट के तीर।*
*श्रावण शुक्ला सप्तमी,*
*तुलसी तज्यो शरीर।।*
महाकवि संत गोस्वामी तुलसीदास जी ने ऐसे समय पर रामचरितमानस की रचना की जिस समय भारतवर्ष में विधर्मियों का बोलबाला था तथा सनातन धर्म का अत्यधिक पतन हो गया था। श्री रामचरितमानस के प्रचार प्रसार से हिंदुत्व व सनातन धर्म की रक्षा हुई। आज हिंदुस्तान में हर घर में श्रीरामचरितमानस काव्य पढ़ा एवं सुना जाता है। जिससे हम सभी भारत वासियों के हृदय में भारतीय संस्कृति ,हिंदुत्व व सनातन धर्म का संचार हुआ और समस्त देश में समरसता, सामंजस्य ,सौहार्द तथा एकता कायम हुई ,जिससे हम सभी खुशहाल एवं निर्विघ्न जीवन यापन कर रहे हैं।